Monday, October 16, 2023

दर्जी के साथ

 बात उन दिनो की है जब मै 19 साल की थी और फ़र्स्ट इयर मे पढ़ती थी। उस दिन मूड बहुत खराब था पापा ने बिना बात के ही डांट दिया था। मैंने अपनी सहेली को फोन किया तो वो भी फ्री नहीं थी तो मूड और खराब हो गया। बुरे मूड को सुधारने के लिए मै खूब शॉपिंग वोपिंग करके पापा के पैसे उड़ाने का मन बनाया।

मै घर मे अकेली लड़की हू और दो बड़े भाई है, अकेली लड़की होने के कारण मै अपने पापा की बहुत लाड़ली हू इसीलिए जब उस दिन पापा ने डांटा तो मै और भी ज्यादाह नाराज़ हो गयी थी। मैंने पापा का क्रेडिट कार्ड टपाया और मॉल की तरफ निकल पड़ी।

हमारा घर काफी खुले विचारो वाला था और मेरा किसी लड़के से दोस्ती को बुरा नहीं माना जाता था। बचपन से ही मेरी दोस्ती लड़को और लड़कियो दोनों से ही थी। लेकिन जैसे जैसे मै जवान होने लगी तो मैंने पाया की लड़को की नजरे मेरे प्रति बदल रही थी। 19 साल की उम्र मे ही मेरा शरीर पूरा भर गया था और छाती और नितम्ब खूब उभर आए थे। कॉलेज मे आने के बाद मेरी एक लड़के से दोस्ती हुई जो थोड़ा आगे बढ़ गयी और मेरे उसके साथ शारीरिक संबंध भी बन गय थे।

सोमवार की दोपहर होने के कारण उस दिन मॉल लगभग खाली था। मै एक बड़े से कपड़ो के स्टोर मे अपने लिए कपड़े देखने लगी। स्टोर भी खाली था और 4-5 सेल्समैन जगह जगह खड़े थे। मैंने एक लहंगा चोली पसंद कर ली, पर उसकी चोली सिली हुई नहीं थी। सेल्समैन ने बताया की पीछे की तरफ टेलर बैठा है वो सिल देगा, तो मै कपड़ा ले कर पीछे की तरफ चली गयी।

टेलर एक अलग कमरे मे बैठा था, मैने उसे कपड़ा दिखाया और चोली सिलने के लिए बोली। मैंने देखा की टेलर करीब 50 साल के लगभग का दाढ़ी वाला आदमी था, वो मेरे को कनखियो से ताड़ रहा था।

"ठरकी साला," मै मन ही मन सोची।

फिर वो मेरे से चोली का स्टाइल पूछने लगा।

"मैडम ये आप जैसी यंग लड़की के लिए ये ठीक रहेगा," वो एक फोटो दिखा के बोला। मैंने देखा की चोली आगे से और पीछे से काफी डीप थी और उसमे मेरी छातिया काफी दिखती।

"ये तो काफी डीप नेक है," मै बोली।

"पर आप पे ये सूट करेगा," वो मेरी छातिया ताड़ते हुए बोला।

"साला कमीना," मै मन ही मन सोची पर कुछ बोली नहीं, उसे अपने ऊपर लार टपकाते देख के मन मे गुदगुदी सी होने लगी। मै भी मज़ा लेने के लिए अपनी चूचियो की तरफ देखते हुए बोली,

"जयादह दिखेंगे।"

"आप पे अच्छा लगेगा, हर लड़की के थोड़े ही इतने अच्छे होते है," वो मेरी चूचियो की तरफ देख के खीसे निपोरता हुआ बोला।

"नहीं मेरे पापा नाराज़ हो जाएगे," मै भी मज़े लेती रही।

"मेरे पास एक सैंपल चोली है, आप ट्राए तो करके देखिये," वो बोला और जल्दी से एक चोली मेरे आगे रख दी। मै उस दिन सलवार सूट पहने थी और चोली पहनने के लिए मुझे कुर्ता उतारना पड़ता। मै चोली हाथ मे लेकर उसकी तरफ देखने लगी।

"वहाँ, पीछे कमरा है," वो पीछे की तरफ इशारा करता हुआ बोला, "वहाँ ट्राइ कर लीजिए।"

मै चोली हाथ मे लेकर पीछे के कमरे मे चली गयी। कुर्ता उतारने के बाद मैंने खूटी पर टांग दिया और चोली पहेनने लगी। मैंने देखा की चोली छोटी सी थी और मेरा पेट नाभि के नीचे तक खुला था। शीशे मे देखा तो पाया की मेरे leggings मेरे बदन पर चिपकी हुई थी और मेरी पतली कमर और चौड़ी गांड मस्त लग रही थी। चोली मे मेरी cleavage भी मस्त दिख रही थी। मै अभी देख ही रही थी की टेलर बाहर से बोला,

"मैडम पहन लिया, मै आऊ, fitting देखने।"

मै एकदम से हकबका गयी, "ये साला अंदर आ के मेरे साथ मजे लेना चाहता है।" मेरे को अंदर ही अंदर गुदगुदी होने लगी। बाहर दूर दूर तक कोई नहीं था तो मुझे भी मस्ती सूझने लगी। साला ठरकी बूढ़ा देखेगा तो लार ही टपकायगा और क्या करेगा, मै ये सोच कर कुंडी खोल दी। पर मुझे उसके हरमीपन का पता नहीं था, या ये कहिए की मुझे अपने बारे मे पता नहीं था की मै कितनी जल्दी मर्द के सामने टांगे फैला दूँगी।

"वाह," वो मुझे देखते ही बोला, "कितनी अच्छी लग रही है आप पे।" वो मेरे को ऊपर से नीचे तक निहारने लगा और बात करते करते वो छोटे से रूम मे अंदर ही आ गया। उसके घूरने से मेरे बदन मे सनसनी होने लगी।

"मैडम एक बार पीछे से दिखाओ," वो बोला तो मै निशब्द घूम गयी।

"बढ़िया," वो बोला तो मै वापस घूमने लगी पर वो मेरे कंधे पर हाथ रख के मुझे रोक दिया, "एक मिनट मैडम।"

मेरी दिल की धड़कने अचानक से बढ़ गयी। वो दोनों हाथो से मेरे कंधे पकड़े रहा और मुझे सीधा खड़ा कर दिया।

"मैडम आपकी कमर पतली है और नितांब उठे हुए है, आप जब लहंगा यहा बांधेगी तो बहुत बढ़िया लगेगा," वो मेरी कमर पर नीचे की तरफ हाथ रख के बोला। मेरी धड़कने और बढ़ गयी और मै वापस घूमने लगी पर वो एक हाथ मेरे कंधे पर और एक हाथ मेरी कमर पर रख कर मुझे रोके रहा।

"एक मिनट मैडम।"

"आप लहंगा यही बंधेगी या और नीचे," कहकर वो अपना हाथ और नीचे मेरी leggings की इलास्टिक पर ले आया।

"बस बस, यही पे," मै अब झनझनाने लगी थी, मै जल्दी से वापस घूम गयी पर मेरे घूमने से पहले वो मेरी गांड पर अपनी हथेली फिरा दिया,

"मैडम यहाँ बाँधिए तो और अच्छा लगेगा," वो बोला।

"क्या कर रहे हो," मै तेवर दिखती हुई बोली, "अब क्या नीचे ही गिरा दू।"

"अरे नहीं आपके नितम्ब तो उठे हुए है नीचे थोड़े ही गिरेगी," वो खीसे निपोरता हुआ बोला तो मै चिढ गयी।

"इधर उधर क्या हाथ लगा रहे हो," मै गुस्सा दिखाते हुए बोली।

"अरे मैडम, नाप भी तो लेना है," वो पूरी बेशर्मी से बोला।

"तो क्या नाप हाथ से लोगे," मै उसकी बेशर्मी पर और चिढ़ गयी पर वो खीसे निपोरता रहा।

मै शीशे मे चोली की फिटिंग देखने लगी और देखा की वो भी मुझे ताड़ रहा था।

"मैडम, अगर नाराज़ न हो तो मै भी चोली की फिटिंग चेक कर लू," वो बोला।

"कर लो, फिटिंग चेक करने ही तो आए हो अंदर," मै बोली।

"तो फिर हाथ लगा तो नाराज़ नहीं होना," वो पूरे हरमीपन से बोला और इससे पहले की मै कुछ बोलू वो मेरे कंधे पर एक हाथ रख दिया और दूसरे हाथ से चोली के किनारे को पकड़ के इधर उधर खीच के देखने लगा।

वो पूरा खेला खाया था, वो कभी एक हाथ से मेरे कंधे और गर्दन को सहला देता था और कभी दूसरे हाथ से मेरे पेट को। मै बीच बीच मे चिहुक जाती जब वो जानबूझ कर नाभि के ऊपर सहला देता, मेरी साँसे उसकी हरकतों से भारी होने लगी थी,

"बस हो गया क्या," मै बोली।

"कहा मैडम, आपने तो हार्ड कप वाली ब्रा पहनी है और कप भी बड़ा है, तो इसमे फिटिंग सही कहा पता चलेगी," वो बोला।

"नहीं कप बड़ा नहीं है," मै हकबका गयी, मेरे को याद ही नहीं था की मै हार्ड कप ब्रा पहने थी।

"और मैडम आपको हार्ड कप ब्रा की क्या जरूरत है आपके तो अपने कप ही अभी हार्ड है," वो पूरी ढीठाई से बोला तो मै कोई जवाब नहीं दे पायी। वो एक हाथ मेरे मोमो के ऊपर लेजा कर ब्रा के कप को पकड़ लिया।

"ठीक है, ठीक है, मै अगली बार नॉर्मल कप वाली ब्रा पहन लूँगी," मै कसमसाते हुए बोली।

"अभी इस ब्रा को उतार दो तभी सही नाप हो पाएगा," वो अभी भी ब्रा को पकड़े हुए था।

"नहीं नहीं, मै कल नॉर्मल ब्रा पहन कर आऊँगी,"

"अरे दो मिनट का तो काम है उसके लिए कल क्या आना," वो बोलते बोलते चोली के हुक खोल दिया।

"अहह," मै एकदम से सनसना गयी और उसका हाथ पकड़ ली, "क्या कर रहे हो,"

"नाप ले रहा हू मैडम," वो धीरे से बोला, "और शर्म करने की कोई जरूरत नहीं है, यहा कोई नहीं आयेगा, ब्रा उतार के सही से नाप लेता हूँ।"

मुझे पता ही नहीं चला पर वो मुझे अब तक कोने मे धकेल चुका था, उसका एक हाथ मेरी पीठ के पीछे ब्रा का हुक खोल रहा था और दूसरे हाथ से वो चोली उतारने लगा। मै कोने मे फंस सी गयी थी, न आगे जाने की जगह थी और न पीछे।

"छोड़ो छोड़ो, मुझे नहीं नाप देना," मै उसका हाथ पकड़ने की कोशिश करने लगी।

"मैडम छीना झपटी नहीं, ये चोली बड़ी महंगी है फट जाएगी," वो इस बार एसी सख्ती से बोला की मै एकदम से भोचक रह गयी। मै स्तभ खड़ी रह गयी और वो चोली मेरे कंधो से उतार के नीचे फेक दिया। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा, मेरी ब्रा का हुक भी वो खोल चुका था।

"छोड़ो," मै कसमसाई।

"मैडम, शर्माने की जरूरत नहीं है, मै बहुत लड़कियो की छाती का नाप नंगा करके ही लिया हूँ," वो फुसफुसाया। वो झटका दे कर ब्रा मेरे हाथ से खीच लिया और वो भी मेरे कदमो मे जा गिरी। मै अपनी नंग्न छातियो को छुपाने के कोशिश करने लगी पर वो मुझे बांहों मे दबोच के धीरे धीरे मेरे हाथो को हटाने लगा। मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मै अर्धनग्न अवस्था मे एसे उसकी बांहों मे फंस जाऊँगी।

उसकी गरम गरम साँसे मेरे गालो पर पड़ने लगी, "मैडम, हाथ हटाओ," वो फुसफुसाते हुए बोला और मेरे हाथो को पकड़ के हटाने की कोशिश करने लगा, "हटाओ वरना नाप कैसे लूँगा।"

मेरे को कुछ समझ नहीं आ रहा था, मै शर्म से गडी भी जा रही थी और एक अजीब तरह की उत्तेजना मे भी डूबती जा रही थी। मेरे हाथो से जैसे जान ही निकली जा रही थी और मेरा विरोध धीरे धीरे कम होता गया, अभी भी मै से सोच के अपने आप को सांत्वना दे रही थी की ये मेरे को यहाँ स्टोर रूम मे चोद थोड़े ही देगा, थोड़ा बहुत हाथ लगा लेगा, बस।

जैसे ही मेरे हाथ उसको थोड़ा मौका दिये, तुरंत उसकी सख्त हथेली मेरे मोमो को जकड़ ली।

"पूछ रही थी न की हाथ से नाप लेगा क्या, अब मै हाथो से ही तुम्हें पूरा नाप दूँगा," वो मेरे कानो के पास फुसफुसाया। मै उसके बोलने के लहजे से अवाक रह गयी, अब वो पहले की तरह मैडम मैडम करके बात नहीं कर रहा था।

मेरा अर्धनंग्न शरीर उसने अपनी मजबूत बांहों मे भर लिया और मेरे कोमल स्तनो को कस कस कर भीचने लगा।

"अहह, अहह," मै स्तब्ध अवस्था के खड़ी थी, मेरी समझ मे नहीं आ रहा था की वो मेरे साथ इतना आगे कैसे बढ़ गया था। अभी एक मिनट पहले तक तो मै चोली ट्राइ कर रही थी और इस टेलर के साथ मज़ाक कर रही थी और अब वो मुझे अपनी बांहों मे दबोच के मेरे स्तन रगड़ रहा है।

"छोड़ो, छोड़ो," मै कसमसने लगी, पर उसकी हरकतों की वजह से मेरे पूरे शरीर मे सनसनाहट हो रही थी और मुह से न चाहते हुए भी कराहे निकाल रही थी। मेरे दोनों हाथ उसके हाथो के ऊपर शीथल पड़े थे और उसे अपने मोमो को मसलने से बिलकुल भी नहीं रोक पा रहे थे।

"देखा तुम्हारे मोमे कितने तने हुए है," वो बोला तो उसकी साँसे मेरी गर्दन पर पड़ने लगी, "हार्ड कप ब्रा की कोई जरूरत नहीं है।"

मै चुपचाप गर्दन हिला दी।

"क्या नाम है तुम्हारा।"

"बबली,"

"कितनी उम्र है"

"19"

"हुम्म, बबली अपना सर पीछे करके मेरे सीने पर रख दो," वो बोला तो मै बिना हुज्जत किए अपना सर उसके सीने पर टिका दी। उस स्थिति मे मै सीधा उसकी आंखो मे देख पा रही थी और वो मेरी आंखो मे, उसकी ढाढ़ी मेरे गालो पे लगने लगी।

"अब बस करो, अब जाने दो," मै उसको बोल तो रही थी पर अब मेरी समझ मे आ रहा था की ये मुझ पर पूरी तरह से हावी हो गया है और ये मेरे साथ अपनी मनमर्ज़ी करेगा और मै कुछ भी नहीं कर पाऊँगी। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धडक रहा था मै आज तक केवल एक अपने हमउम्र लड़के के साथ ही सेक्स किया था। पर ये खयाल भी मन मे आ रहा था की दिन दहाड़े कपड़ो के स्टोर मे ये मेरे साथ सेक्स तो नहीं कर पाएगा, सिर्फ छेड़छाड़ ही कर पाएगा। मेरी इसी ऊहापोह की स्थिति का वो पूरा फायदाह उठा रहा था।

मैंने देखा की उसके मुख पर कुत्तसित मुस्कान तैर रही थी जैसे की वो मेरे मन की बात पढ़ पा रहा हो फिर उसके होंट मेरे गालो से फिसलते हुए मेरे होंटो पर आने लगे। मेरी आंखे स्वत मूँद गयी।

"गुड गर्ल," मुझे उसकी आवाज सुनाई दी। मै गहरी गहरी साँसे लेने लगी और उसके होंट मेरे होंटो के ऊपर चिपक गए और वो मेरे होंटो को चूमने और चूसने लगा। उसकी जीभ मेरे होंटो के ऊपर फिसलती हुई मुह के अंदर घुस गयी। न चाहते हुए भी मेरा मुह खुल गया और मेरी जीभ उसकी जीभ से रगड़ने लगी।

मै शर्म और उत्तेजना मे डूबी जा रही थी, उससे दबने मे अब मज़ा आने लगा था। छाती मे मीठा मीठा दर्द हो रहा था और मन कर रहा था की वो एसे ही दबाता रहे। तभी वो मेरे निप्पल और उसके घेरे को अपने अंगूठे और उंगली के बीच दबा लिया, मेरे पूरे बदन मे तीखा दर्द सा फैल गया जब वो उसे मसलने लगा। मेरा बदन उसकी हरकतों से धीमे धीमे काँप रहा था और वो मुझे दबोच के अपनी मनमरज़ी करता जा रहा था।

"बबली," थोड़ी देर बाद वो बोला।

"हूँ,"

"स्कूल मे पढ़ती हो,"

"नहीं कॉलेज मे,"

"बॉयफ्रेंड है,"

मैने हाँ मे गर्दन हिला दी, "अब जाने दो," मै बोली।

"बहुत गोरी गोरी और साफ सुथरी चुचिया है तुम्हारी, बॉयफ्रेंड ने कभी मसली नहीं है क्या।"

मै शर्म से लाल होने लगी और वो ज़ोर ज़ोर से निप्प्ल्स को मसलने लगा।

"अहह, अहह, नहीं, अहह, आई, आई," मै कसमसाती रही और वो रगड़ता रहा। मै धीरे धीरे गरम होने लगी और जब भी वो अपने होंट मेरे होंटो के ऊपर रखता तो उसके कहे बिना भी मै उसे किस करने लगती। जब भी वो कस कर मसलता तो मै कसमसा जाती।

मै फिर से कसमसाई तो वो मुझे कस कर जकड़ता हुआ बोला, "बबली ये leggings इलास्टिक वाली है या नाड़े वाली।"

"इलास्टिक," मै काँपते स्वर मे बोली।

"इसे मै उतारू या तुम खुद ही उतारोगी।"

"नहीं नहीं प्लीज," मै मिमयाई।

"श्श्श, पुच, पुच, क्यू इतना मचल रही हो, मै बहुत प्यार करूंगा तेरे को,"

"यहाँ तुम्हें और मुझे कोई डिस्टर्ब करने वाला नहीं है, दरवाजा भी अंदर से बंद है," वो फुसफुसाया और मेरे सभी विरोध को खत्म कर दिया।

उसका एक हाथ मेरी चूत को टटोलने लगा, "टांगे क्यो चिपका रही है, चुत तो तेरी गीली हो चुकी है," वो फुसफुसाया, "चल टाँगे फैला, पुच, पुच, नखरा नहीं करते।"

धीरे धीरे करके वो मेरे को पूरा नंगा कर दिया और फिर अपने कपड़े उतारने लगा तो मेरी साँसे भारी होने लगी ये समझ के की अब ये मेरे को चोदेगा। ये मेरे बॉयफ्रेंड जैसा लड़का नहीं है बल्कि पूरा मर्द है और मै ये सोच सोच के उत्तेजना मे काँपने लगी। जब वो अपना अंडरवियर उतारा तो उसका काला मोटा लाँड़ देख के मेरी सिसकारी निकाल गयी।

वो मुझे वही पड़े एक कपड़ो के ढेर के ऊपर लिटा के मेरे ऊपर चढ़ गया। उसका मोटा लाँड़ मेरी जांघों पे चुभने लगा। जब उसका पूरा वजन मेरे ऊपर पड़ा तो मेरे मुह से कराह निकल गयी।

मेरे बदन मे भी आग लग चुकी थी और मै सब कुछ भूल के मज़े मे डूबने लगी थी।

"देख तू साथ देगी तो तेरे को भी मज़ा आयेगा," वो मेरे एक मोमे को जकड़ता हुआ बोला। उसका हाथ शिकंजे की तरह मेरी छाती पर जम गया।

"अहह," मै करहा पड़ी, "कैसे अंकल।"

"अच्छी बच्ची," वो खुश होता हुआ बोला, "पहले तो टांगे खोल ले और मेरे लौड़े को एक हाथ से सहला।"

मुझे बहुत शर्म आई पर फिर भी मै टांगे फैलाने लगी, मेरे अंदर अजीब सी सनसनी होने लगी। मै हाथ बढ़ा के उसका मूसल जैसा लाँड़ पकड़ ली।

"अहह, से तो बहुत मोटा है," मै आह भर कर बोली। मै उसके लाँड़ पे ऊपर से नीचे हाथ फेरने लगी।

"पुच पुच, बहुत अच्छे, एसे ही सहलाती रहो" वो भराई हुई आवाज मे बोला और मेरे शरीर को जगहे जगहे से मसलने रगड़ने लगा। वो मेरी पावरोटी की तरह फूली हुई चूत को मसलने लगा।

"चूत तो तेरी मस्त है, काम लगा है न तेरा," वो बोला तो मेरी समझ मे नहीं आया और मै उसका मुंह देखने लगी।

"अरे मतलब लौडा लिए है न चूत मे, या आज पहली बार है।"

मै शर्म से लाल हो गयी उसकी बात सुन के, "धत।"

"अरे अब शर्म क्यो कर रही हो, सच सच बता," वो मेरे गालो को किस करता हुआ बोला, तो मै हाँ मे गर्दन हिला दी।

वो अपनी एक उंगली मेरी चूत मे घिसने लगा, "लगती तो सीलबंद है, मज़ा देगी तू मस्त।"

उसके बाद वो मेरे ऊपर पिल पड़ा और मेरे सारे शरीर को आटे की तरह गूंधना शुरू कर दिया। मै पूरी तरह फैल के पड़ी हुई थी और मन कर रहा था की वो करता रहे।

"अंकल अब कर दो न," मेरे मुह से अपने आप निकाल गया, मै अब कंट्रोल नहीं कर पा रही थी।

'अहह करो न," मै कराह पड़ी।

"बबली मज़ा आ रहा है," वो फुसफुसाया।

"हाँ अंकल," मै आह भर्ती हुई बोली।

"तो मुझे भी मज़ा लेने दे, अभी तो मै शुरू हुआ हूँ।"

"उह उह अंकल, अह अह, तो मज़े लो न," मै बदन को एठते हुए बोली, "कर दो।" पर वो अपनी रफ्तार से अपने काम पर लगा रहा।

"बबली," वो फुसफुसाया।

"अह," मेरी आंखे मुँदी जा रही थी।

"अब तू तैयार है।"

"अहह, अंकल।"

वो मेरी छातियो को छोड़ के मेरे दोनों तरफ पैर डाल के चढ़ गया। मेरे सीने मे अभी भी टीस मार रही थी। वो अपना मोटा लंबा लाँड़ मेरे गालो पर थपथपाने लगे जैसे मुह का दरवाजा खोलने को कह रहा हो।

"अंकल, अब ये मत करो न, उह, अब नीचे घुसा दो," मै वासना मे तड्फड़ा रही थी।

"पर मेरा मन तो तेरे मुह मे गिराने का है," उनके चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी।

"नहीं न, अंकल," मै कसमसाई। मै उसके हाथ पर एक घूसा भी मार दी। वो मेरे बालो को पकड़ मे मेरा मुह सीधा कर दिया।

"पहले मुह मे ले,"

"अह, अह, उह, अह, नहीं न, अंकल," मै कसमसाती रही।

"थोड़ी देर चूस ले, फिर चूत मारता हूँ तेरी।"

उस समय मै इतनी गरम हो चुकी थी की मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था, मै उसका लौंडा पकड़ के अपने होंटो पर रख दी,

"घुसा दो," मै कराही, और मुह पूरा चौड़ा खोल के उसका मोटा लाँड़ अंदर लेने लगी।

"गुड गर्ल," वो खुश होता हुआ बोला और उसका लाँड़ मेरी जीभ पर फिसलने लगा।

"ग्ग, अग्ग, ग्ग, ग्ग, अग्ग्र्ल," मै अपना पूरा मुह खोल के उसके मोटे लाँड़ को पीने लगी।

"शाबाश, अंदर तक ले, पूरा उतार ले," वो धीरे धीरे 3/4 लाँड़ अंदर पेल दिया।

"औकऔक," मै ज़ोर से फड़फड़ाई जैसे ही उसका लाँड़ मेरे हलक मे जाके लगा। पर वो तुरंत पीछे खीच लिया।

"ले, ले, धीरे धीरे उतार ले," वो मेरे चेहरे को सहलाता हुआ बोला। उसके वासना मे डूबे चेहरे को देख के मुझे नशा सा चढ़ रहा था। वो मेरे बालो को पकड़ के लाँड़ मेरे मुह के अंदर पेलने लगा।

"औक, आ, आक, औक," मै छटपटाते हुए अपने गले मे उतरते लाँड़ को बरदास्त करने लगी।

"शाबाश शाबाश, थोड़ा और, थोड़ा और," वो फुसफुसाया और फिर एक और धक्के मे वो जड़ तक पेल दिया।

"औ... औ..." मेरा मुह लाँड़ की जड़ मे जा लगा। मै एकदम स्थिर लेटी रही और किसी तरह नाक से सांस लेती रही।

"अहह, शाबाश, पीती रह," वो भर्राई आवाज मे बड़बड़ाने लगा, "चूसती रह।"

मेरी छटपटाहट धीरे धीरे कम होने लगी और वो मेरे बालो को पकड़ के मेरे मुह आगे पीछे करने लगा। वो अब आराम से मेरे मुह को चोदने लगा और उसका लाँड़ मेरे मुह मे हलक तक अंदर बाहर होने लगा।

"अहह, मस्त लौंडिया है," वो बड़बड़ाया, "थोड़ी देर और चूसेगी तो तेरे मुह मे ही गिरा दूँगा।"

वो मेरे चूत भी मारना चाहता था तो कुछ देर बाद वो लाँड़ बाहर खीच लिया, जैसे ही वो लाँड़ बाहर निकाला मै ज़ोर ज़ोर से हाफने लगी।

"अंकल," मै शिकायती लहजे मे बोली पर उसको कोई फर्क नहीं पड़ा और वो मेरे टांगे ऊपर उठा दिया।

"चूत तो तेरी पावरोटी की तरह फूली हुई है," वो मेरी चूत को थपथपाता हुआ बोला और अपना मोटा लाँड़ चूत की फाँको के बीच घिसने लगा।

"अहह अंकल," मै सिसकारी भरने लगी और वो धीरे धीरे लाँड़ को अंदर ठेलने लगा।

"आह, आह आई अहह," मै कसमसाती रही उसका लाँड़ फिसलता हुआ अंदर समा गया और मै उसको कस कर चिपट गयी।

"अंकल कर दो, चोद दो," मै बड़बड़ाने लगी। वो पूरा मेरे ऊपर पसर गया और धक्के मारने लगा।

"उह उह अंकल, अह अह,आह, आह आई अहह," हर धक्के पे मै जैसे स्वर्ग पहुच जाती। वो हुमच हुमच के धक्के मरने लगा और मै उससे चिपक के झड़ने लगी। मै इससे पहले कभी भी ऐसा ज़ोर से नहीं झड़ी थी, मै करीब एक मिनट तक कापती रही और झड़ती रही। पर मेरे झड़ने के बाद भी अंकल मुझे पेलते रहे और मेरे सारे कस बल निकाल दिये।

"अहह, तेरी चूत भर दूँगा मै अपने माल से," वो बड़बड़ाते हुए थोड़ी देर बाद मेरे अंदर ही झड़ गए।

हम दोनों ही थोड़ी देर तक उठ नहीं पाये। उसके बाद धीरे धीरे मेरा जोश ठंडा पड़ने लगा तो एहसास हुआ की ये क्या हो गया, मै कैसे एक चालू लड़की की तरह इस अजनबी से चुद गयी। दर्जी उठ के बाहर चला गया था तो मै भी उठ गयी, मेरा शर शरीर दर्द के मारे टूट रहा था।

मै किसी तरह कपड़े पहन के बाहर आई तो देखा की करीब एक घंटा बीत चुका था, ये दर्जी मेरे को एक घंटे से रगड़ रहा था। बाहर अभी भी सन्नाटा था तो थोड़ा चैन आया की किसी को पता नहीं चला।

"बबली नाप तो अभी भी नहीं लिया, तुम बाहर क्यो आ गयी," वो कुतसित भाव से मुस्कुरा रहा था।

"मेरे को नहीं सिलवाना," मै बोली।

"अरे नहीं नहीं, चलो अभी नाप ले लेता हूँ और मै बहुत बढ़िया चोली सिलुंगा," वो बोला और मेरे न न करते करते भी मेरा नाप लेने लगा। नाप देकर और रसीद लेकर मै जल्दी से घर की तरफ चल पड़ी।

अगले हफ्ते मै सिली हुई चोली लेने भी गयी थी, पर वो कहानी फिर कभी।

आप लोगो को मेरी कहानी कैसी लगी, जरूर बताना।


उस रात जब मै सोने के लिए बिस्तर पर लेटी तो मेरा बदन दर्जी वाले हादसे को सोच सोच के काँप रहा था। मेरे को रह रह के अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था की मै कितनी आसानी से इस दर्जी से फंस गयी। साले ने पेल ही दिया मुझे, यकीन ही नहीं हो रहा था पर हाथ लगाने पर अभी भी चूचियो मे दर्द हो रहा था।

सोने के बाद सपने मे भी दर्जी आ गया, उसकी दाढ़ी मेरे चेहरे पर चुभने लगी और उसका हाथ मेरे स्तनो मे दर्द भरने लगा। मुझे पता नहीं चला कब मै अपनी पैंटी उतार दी और तकिया टाँगो के बीच मे भीच ली। मेरी साँसे भारी हो गयी और मै अपनी चूत तकिये पर घिसने लगी।

सुबह मै देर तक सोती रही और मम्मी के चिल्लाने पर ही उठी।

"आज घर मे मेहमान आने वाले है और ये मैडम जी अभी तक सो रही है," मम्मी चिल्लाई तो मुझे याद आया की मेरे चाची की लड़की रीनी के ससुर आज हमारे शहर आ रहे थे और एक दो दिन हमारे यहाँ ही रुकने वाले थे। मै जल्दी जल्दी नहाना धोना निबटाने लगी। करीब 12 बजे मेहमान लोग आ गए और मम्मी पापा उनके साथ नीचे ड्राइंगरूम मे बैठ गए। मै भी अपने कमरे से नीचे आ गयी मम्मी की हेल्प करने के लिए।

जैसे ही मै ड्राइंगरूम मे पहुंची तो मेरे पैरो तले जमीन निकाल गयी, वहाँ रीनी के ससुर के साथ वो दर्जी भी बैठा हुआ था। मै एकदम हकबका गयी और किसी तरह नमस्ते की दोनों को। दर्जी भी मुझे देख के चौंक गया पर फिर संभल के बैठ गया। मै मम्मी की हेल्प करने लगी चाय वगैरा पिलाने मे, लड़की के ससुर थे तो थोड़ी आव भगत तो होनी ही थी। वही मुझे पता चला की ये दर्जी रीनी के ससुर का दोस्त था और जिस दुकान मे मै गयी थी वो उसकी ही थी। मै कनखियो से जब दर्जी की तरफ देखा तो वो मुझे देख मे मुस्कुरा दिया।

उधर दर्जी ने जब बबली को देखा तो वो भी चौंक गया पर फिर मन ही मन खुश होने लगा। बबली साधारण से सलवार सुट मे थी पर वो कुर्ता उसके बदन पर फिट आ रहा था और उसका गदराया हुआ शरीर मस्त लग रहा था। दर्जी उसके उठे हुए नितांबो के कटाव को निहारते हुए उसके नंगे शरीर की कल्पना करने लगा। उसके भोले से चेहरे पर परेशानी के भाव उसे और मोहक बना रहे थे।

ससुर जी दर्जी का परिचय कराते हुए बता रहे थे की उसकी वेव माल मे दुकान है और वो लेडिज कपडो की बहुत अच्छी वराइटी रखता है और अच्छा सिलता भी है, तभी वो हरामी मम्मी को देख बोल पड़ा,

"आप भी आइएगा माल मे, बिटिया तो आती रहती है कपड़े सिलवाने," वो धूर्त की तरह मेरी तरफ देख के बोला। जब मम्मी मेरी तरफ देखी तो मै खिसियाती हुई हाँ मे गर्दन हिला दी।

"अभी कल ही तो आई थी बिटिया, लेकिन नाप ठीक से नहीं हो पाया एक बार फिर लेना पड़ेगा," वो बड़े आराम से बोला, "चलो अब जब मै यहाँ आया हूँ तो नाप भी ले लूँगा।"

"मै... मै... फिर कभी दुकान पे आ जाऊँगी," मै घबराते हुए बोली तभी पापा बोल पड़े,

"अरे दुकान पर क्यू चक्कर लगायगी जब अंकल यही पर आए हुए है,"

सभी हाँ के हाँ मिलने लगे तो मै गर्दन झुका के चुप हो गयी। उसके बाद चाय नाश्ता होने लगा और मै मौका मिलते ही उठ के अपने कमरे मे चली गयी। जब दोपहर के खाने का टाइम हुआ तो मुझे फिर जाना पड़ा मम्मी की मदद करने। जब भी दर्जी से नजरे मिली वो मुस्कुरा दिया।

खाने के बाद मै अपने कमरे मे लेट गयी पर थोड़ी ही देर बाद मेरे कमरे के बाहर कुछ खटर पटर सुन के मै बाहर आयी तो देखा की पापा दोनों को लेकर मेरे बाजू वाले कमरे मे जा रहे थे। वो कमरा गेस्ट रूम की तरह ही इस्तेमाल होता था और उन्होने दोनों को दोपहर मे वही आराम करने के लिए बोल दिया।

"बबली का कमरा भी यही बाजू मे है कोई जरूरत हो तो बता दीजिएगा," पापा बोले तो ससुर जी गर्दन हिलाने लगे।

"बढ़िया है मै नाप भी ले लूँगा जाने से पहले," दर्जी बोला तो पापा ठीक है कहते हुए चले गए और मै धड़कते हृदय से अपने कमरे मे घुस गयी। मै कमरे मे बैठी घबरा रही थी की ये तो घर तक आ गया है, अब क्या होगा और अभी नाप भी लेने आयेगा।

तभी मैंने देखा की दर्जी धीरे से मेरे कमरे मे घुस गया और पीछे दरवाजे की कुंडी लगा दी।

"क्या... क्या... दरवाजा क्यू बंद कर दिया," मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा।

"तेरा नाप लेना है," वो मुसकुराते हुए बोला, "और तुझे तो पता है की मै नाप कैसे लेता हूँ।"

वो मेरी तरफ बढ़ा तो मै पीछे हटने लगी, "नहीं... प्लीज।"

वो तेजी से आगे बढ़ के मुझे अपनी बाहो मे जकड़ लिया, "कल तो ज़ोर से करो, ज़ोर से करो बोल रही थी," वो फुसफुसाया।

"नहीं प्लीज कोई आ जाएगा," मै काँपने लगी।

"दरवाजा बंद है," वो फुसफुसाया और मेरी गोलाइयों को कुर्ते के ऊपर से ही नापने लगा।

"छोड़ दो, मम्मी पापा घर मे है," मै कसमसाई और उसका हाथ पकड़ने लगी पर वो कहा मेरे काबू मे आने वाला था।

"आज तो कल से भी ज्यादा सुंदर लग रही है," वो मेरे गालो पर किस करता हुए बोला, "कल तो तूने नाप बड़े प्यार से दिया था आज न न क्यू कर रही है।"

"मम्मी पापा घर मे है।"

"कोई बात नहीं दोनों दोपहर मे आराम कर रहे है।" वो मुझे अपने मरदाने शरीर मे समेट लिया और होंटो पर किस करने लगा। वो अपनी मनमानी करने लगा और मै एक नाज़ुक गुड़िया की तरह उसकी गिरफ्त मे जकड़ी रही। मेरे बदन मे कपकंपी दौड़ने लगी जब उसके मजबूत हाथ मेरे नितंबो को मसलने लगे।

मै उत्तेजना और डर के मारे काँपती रही की मम्मी आ गयी तो क्या होगा, पापा आ गए तो क्या होगा और वो मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया।

"प्लीज, प्लीज, यहा मत करो, मै तुम्हारे पास दुकान पर आ जाऊँगी," मै मिमियाने लगी पर वो नहीं रुका। सलवार टखनो मे जा गिरी और वो मेरी टाँगे फैला के हथेली मेरी कच्छी मे घुसेड़ दिया।

"पावरोटी की तरह फूली हुई है तेरी चूत तो," वो मसलते हुए फुसफुसाया और अपनी मोटी उंगली मेरी फाँको के बीच घिसने लगा।

"अहह," मै कराह पड़ी जब उसकी मोटी सी उंगली घप से अंदर घुस गयी। वो पहले एक उंगली से फिर दो उंगली से घपाघप करने लगा।

"अहह अहह आई, क्या कर रहे हो," मै कसमसाने लगी।

"तेरी चूत को तैयार कर रहा हु, देख पानी निकलने भी लगा है।"

मै कसमसाती रही और वो मेरी चूत मे घपाघप करके पूरी गीली कर दिया। मै समझ गयी थी की ये जो करना चाहता है वो कर के मानेगा तो मै चुपचाप खड़ी रही और वो मेरे सारे कपड़े उतार डाला। खुद भी वो नंगा हो गया और मुझे बिस्तर पर लिटा के ऊपर चढ़ गया।

"अहह अंकल," मै कराह पड़ी जब वो मेरे ऊपर अपना वजन डाला और उसका लंड मेरी चूत पे ठोकर मारने लगा।

"आह, आह आई अहह," मै कसमसाती रही और उसका लन्ड फिसलता हुआ अंदर समा गया। मै सिसकारी भर्ती हुई उसको कस कर चिपट गयी।

"अब आई न लाइन पे, तब से न न कर रही थी," वो खुश होता हुआ बोला। वो मेरे को अपने नीचे समेट लिया और धक्के लगाने शुरू कर दिये।

"अहह, तुम बहुत गंदे हो... आई अह... मै मना थोड़े ही कर रही थी... अहह अहह, मै दुकान पर आ जाती।"

"पुच पुच, गुड गर्ल, तेरे घर मे घुस के चोदने का मज़ा ही कुछ और है, एसे मौके को मै कैसे छोड़ सकता हूँ।"

वो पूरी मस्ती मे आ के ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा और मै अपनी टाँगो को दोनों हाथो से पकड़ के ऊपर उठा ली।

"अहह, अहह, आई मम्मी," हर धक्के पर मेरी कराह निकल जाती। वो एक पंजे से मेरी छाती मसलने लगा और दूसरे से मेरे मुह सीधा करके मेरे होंटो को चूमने चूसने लगा। उत्तेजना मे मेरी आंखे बंद हो गयी और मै अपनी जीभ उसकी जीभ से मिला कर किस करने लगी।

मै दर्जी से मिलने से पहले कूवारी नहीं थी पर मेरे बॉयफ्रेंड ने कभी भी मुझे एसे नहीं चोदा था। दर्जी से करवाने के बाद ही मुझे पता लगा की मर्द से चुदने का मज़ा क्या होता है। वो मेरे पूरे शरीर को आटे की तरह गूँथ रहा था और उसके सख्त हाथ मेरा पूरा कसबल निकाल दे रहे थे।

धीरे धीरे मेरे अंदर उबाल आने लगा और मै कसमसाते हुए उत्तेजना के चरम पर पहुँच गयी। थोड़ी देर और मुझे पेलने के बाद वो भी अपना माल मेरी चूत मे भर दिया और हाँफता हुए मेरे बाजू मे लुढ़क गया।

"जाओ अब," मै उसकी छाती पर चपत लगती हुई बोली तो वो हंसने लगा। मेरे पूरे बदन मे मीठी मीठी टीस हो रही थी। मै बिस्तर पर लेटे हुए उसे कपड़े पहनते हुए देखने लगी।

वो कपड़े पहन के मेरे पास आया और मेरे गालो पर किस करते हुए कहने लगा, "यही तो दिन है तेरे मज़ा करने के, बाद मे शादी के बाद बच्चो को पालने मे मज़ा लेने का कहा मौका मिलता है।"

"धत," मै शर्मा गयी।

"छोड़ो, मुझे कपड़े पहनने दो," मै इठलाई।

"पहले वादा कर की अब मेरे साथ नखरा नहीं करेगी।"

"ठीक है नहीं करूंगी, अब खुश।"

"चल अब मै चलता हूँ, अभी ज्यदाह टाइम नहीं है, रात मे दरवाजा खुला रखना तो इतमीनान से करेंगे।"

मै हैरत से उसे देखने लगी, "रात को आप यही रुकेंगे।"

"तुझे छोड़ के कहा जाऊंगा," वो मुस्कुराया।

उसके जाते ही मै दरवाजा बंद कर ली और नंगी ही बिस्तर पर लेट गयी, रात को वो फिर आएगा ये सोच सोच के मुझे घबराहट भी हो रही थी और रोमांच भी। थकावट की वजह से कब मेरी आँख लग गयी पता ही नहीं चला। जब आँख खुली तो देखा की शाम होने को आई थी। मै नीचे पहुंची और मम्मी का काम मे हाथ बटाने लगी। मम्मी से बात करते हुए पता चला की रिनी के ससुर जी और वो दर्जी पूराने दोस्त है और मम्मी बताने लगी की आज रात दर्जी भी उनके साथ हमारे घर मे रुकेगा। मै मन ही मन के मुस्कुराइ क्योकि मै जानती थी की दर्जी क्यो रात को रुकना चाहता है।

रिनी के ससुर जी बाहर वाले कमरे मे बैठे हुए थे जब मै वहाँ गयी तो वो मेरे से बाते करने लगे।

"बबली तुम और रिनी बिलकुल एक जैसी दिखती हो," वो बोले तो मै शिष्टाचारवश हाँ मे गर्दन हिला दी।

"वो तो तुम से करीब 4 साल बड़ी है न,"

"नहीं अंकल 7 साल,"

"अच्छा तो तुम अभी सिर्फ 19 की हो और मै तो तुम्हारे लिए रिश्ते भी बताने लगा था तुम्हारे पापा को," वो हँसते हुए बोला तो मै शर्मा गयी।

"अरे यहाँ आओ, यहाँ बैठो," वो मेरे को अपने बगल मे बैठा लिए और इधर उधर की बाते करने लगे।

"आज दोपहर मे अंकल काफी देर तक तुम्हारा नाप ले रहे थे," वो इधर उधर की बाते करते करते अचानक बोल पड़े तो मेरे तो जैसे काटो तो खून नहीं।

"अः हु," मै हकबका गयी पर वो मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।

वो एक हाथ मेरी पीठ पर रख दिये, "हम दोनों काफी पूराने दोस्त है, मुझे पता है वो कैसे लेता है और कितनी देर तक लेता है," वो दुअर्थी लहजे मे बोले।

मै जड़ सी बैठी रही और वो मेरी पीठ सहलाने लगे, "लगता ही नहीं की तुम अभी सिर्फ 19 की हो, शरीर काफी भरा भरा है," उनकी आवाज मे हवस साफ झलक रही थी।

मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने भरी सभा मे नंगा कर दिया हो। मै उठने की कोशिश करने लगी पर वो मेरे कंधे पर हाथ रख के मुझे बैठा दिये।

"रुको अभी कहा जा रही हो," उनके लहजे मे अनुरोध कम और हुक्म जयादह था।

"मै... मै..." मै रसोई की दिशा मे देखने लगी पर रसोई वहाँ से नज़र नहीं आ रही थी। बर्तनो की आवाजो से लग रहा था की मम्मी वही काम के लगी हुई है। इधर रिनी के ससुर जी मेरी कमर पर हाथ फिराने लगे।

"बबली तुम अभी फ़र्स्ट इयर मे हो न," वो एसे औपचारिक बाते करने लगे जैसे कुछ खास न हो और मेरा कुर्ता हटा के बगल से मेरी कमर पे हाथ फिराने लगे।

मै कसमसने लगी, "मम्मी।"

"क्या मम्मी," उनका हाथ तेजी से मेरे कुर्ते मे अंदर घुस गया। मै कसमसाती रह गयी और वो मेरी ब्रा को ऊपर उठा के मेरा एक स्तन जकड़ लिए।

"आह, मम्मी,"

"श्स्स श्स्स, आवाज नहीं, मम्मी सुन लेगी नहीं तो,"

"छोड़ो," मै फुसफुसाई, मेरी हिम्मत नहीं हुई ज़ोर से बोलने की।

"गुड गर्ल, बहुत मुलायम बूब्स है," वो मेरे स्तनो को मसलता हुआ बोला और मेरे निप्पल और उसके घेरे को अपनी चुटकी मे लेकर रगड़ने लगा।

"अहह, आह," कुछ देर मसलने के बाद वो हाथ बाहर निकाल लिया।

"ब्रा ठीक कर ले," वो बोला तो मै जल्दी से अपनी ब्रा एडजस्ट करके उठने लगी पर वो फिर मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया।

"इतनी जल्दी क्या है, बैठ थोड़ी देर, मै खा थोड़ी न जाऊंगा।"

"मै... मै, मम्मी की हेल्प करनी है किचन मे।"

"कर लेना हेल्प," वो मुस्कुराया और फिर मेरे बालो मे हाथ फिराता हुआ बोला, "कितनी सुंदर हो कोई भी तुम्हें देख के पागल हो जाए, तुम्हें देख के प्यार करने का मन करता है।"

मेरी समझ मे नहीं आ रहा था की मै क्या कहूँ, मै बार बार वहाँ से जाने की कोशिश करती किन्तु वो मुझे रोके रखता।

"अच्छा तुम्हें जाना है तो चली जाओ पर एक किस तो देना पड़ेगा," वो बोला।

"नहीं... नहीं," मै घबरा गयी की वो कहीं फिर से न पकड़ ले, "यहाँ कोई देख लेगा।"

"अच्छा, तो फिर कहाँ।"

"अ उम्म," मै अचकचा गयी।

"ऊपर कमरे मे," वो मुस्कुराने लगा।

मै किसी तरह वहाँ से भाग के किचन मे मम्मी के पास आई। किचन के मेरा काम मे मन नहीं लग रहा था और बार बार ससुर जी की हरकत के बारे मे सोच सोच के दिल ज़ोर से धड़कने लगता था। मै किचन मे मम्मी के साथ ही खड़ी रही, बाहर जाने मे घबराहट हो रही थी की वो कहीं फिर से न पकड़ ले।

मेरे स्तनो मे टीस हो रही थी, कमीने ने इतनी ज़ोर से मसल दिया था। मै रसोई मे खड़ी खड़ी ये सब ही सोचती रही और बार बार रिनी के ससुर जी का वासना से तमतमाया चेहरा मेरे सामने आ जाता। फिर मुझे याद आया की रात मे तो दर्जी भी आने वाला है कहीं दोनों तो नहीं पकड़ लेंगे रात मे। बीच बीच मे मम्मी कुछ काम कह देती तो मै यंत्रवत कर देती पर दिमाग मे यही सब चलता रहा और मेरी साँसे भरी होने लगी।

थोड़ी देर मे पापा घर आ गए और ससुर जी के साथ बातों मे लग गए, फिर दर्जी भी आ गया और मम्मी और मैंने खाना लगा दिया। खाने के बाद मै अपने कमरे मे आ गयी और नाइट सूट पाजामा और कमीज पहन ली। बिस्तर पर लेट कर मेरे दिल मे फिर से वही सब चलने लगा की ये दोनों क्या करेंगे, क्या दोनों एक साथ चोदेगे जैसे पॉर्न मे देखा था या फिर एक एक करके। मेरा दिमाग इतना दूषित हो गया था की मै क्या सही है और क्या गलत ये नहीं सोच पा रही थी। मै एक बार भी ये नहीं सोची की मुझे ये सब रोकना चाहिए या अपना दरवाजा बंद करके लेटना चाहिए।

थोड़ी देर बाद नीचे की आवाजों से पता चलने लगा की अब सोने की तयारी हो रही है और मेरे दिल की धड़कने बढ्ने लगी। दरवाजो के बंद होने की आवाज फिर बगल के कमरे मे कुछ आहाट और फिर सन्नाटा छा गया।

करीब पंद्रह मिनट के बाद मुझे दरवाजे पर कुछ आहाट लगी और नाइट बल्ब की माध्यम रोशनी मे भी साफ दिखाई पड़ा की रिनी के ससुर जी है। उनके पीछे पीछे दर्जी भी घुस गया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। मै उठकर बैठ गयी, मेरा दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था। मैंने देखा की रिनी के ससुर जी बनियान और हाफ पैंट पहने थे जबकि दर्जी टीशर्ट और हाफ पैंट मे था। दोनों ही हट्टे कट्टे थे पर ससुजी की थोड़ी तोंद निकली हुई थी।

"आप... आप लोग," मेरी समझ मे नहीं आया की क्या कहूँ। मुझे पता तो था की दोनों क्यो मेरे कमरे मे आए है, दोनों मुझे चोदेगे, मेरे बदन मे सनसनाहट होने लगी।

ससुर जी मेरे करीब आए और फुसफुसाते हुए बोले, "मेरी किस बाकी रह गयी थी।" मै दर्जी की तरफ देखने लगी पर वो थोड़ी दूर ही खड़ा रहा,

"तुमने प्रोमिस किया था," वो कंधे उचकाता हुआ बोला, "तुम जानो"

"मैंने कब किया था, मौसा जी तो अपने आप ही..." मै हकलाने लगी।

ससुर जी बिस्तर पर मेरे बगल मे बैठ गए। उन्होने अपना हाथ मेरे गर्दन मे डाल के मेरा सर अपने कंधे पर रख लिया।

"गुड गर्ल," वो बुदबुदाये और मेरे गालो को सहलाते हुए मेरा सर सीधा कर दिये।

मै कनखियो से अभी भी दर्जी की तरफ देख रही थी, उसके चेहरे पर धूर्त सी मुस्कुराहट थी और वो अपने कपड़े उतारने लगा था। मुझे अचानक शर्मिंदगी महसूस होने लगी, ये दोनों मुझे बिलकुल चरित्रहीन लड़की समझ रहे होंगे की कैसे मै किसी से भी चुदने के लिए तयार हूँ।

"मौसा जी, प्लीज," मेरे मुह से जैसे कराह निकली और मै दर्जी की तरफ एसे देखने लगी जैसे वो अभी ये सब रोक देगा। तभी ससुर जी के रूखे होंट मेरे होंटो के ऊपर चिपक गए और उसकी सफ़ेद मूछे मेरे गालो और होंटो पर गड़ने लगी। वो मेरे सर को सीधा किए रहे और होंटो को चूसने लगे।

मेरे हाथ स्वतः ही उसके चेहरे पर पहुँच गए और मै उसे पीछे धकेलने की कोशिश करने लगी पर वो आसानी से मुझे जकड़े रहे। थोड़े से प्रयास के बाद ही मै ढीली पड गयी और वो मेरे होंटो को संतरे की फाँको की तरह अपने होंटो से चुभलाने लगे और उसकी जीभ होंटो पर फिसलने लगी। वो इतमीनान और प्यार से मेरे होंटो को चूमने चाटने लगे और कब उसकी जीभ मेरे मुह मे घुस गयी मुझे पता ही नहीं चला। स्वत ही मेरे होंट खुल गए और मै भी उसकी जीभ से अपनी जीभ रगड़ने लगी और किस करने मे उनका पूरा सहयोग करने लगी।

मै कनखियो से दर्जी की तरफ देखी तो वो चेहरे पर धूर्त सी मुस्कुराहट लिया पूरा नंगा खड़ा था और अपने लन्ड को धीरे धीरे सहला रहा था। जैसे मुझ पर झपप्टा मारने के लिए पूरा तयार हो। मुझे अपने ऊपर ग्लानि होने लगी की मै कैसे मर्द का हाथ लगते ही गर्म हो जाती हू।

थोड़ी देर होंटो को चूमने के बाद उसके होंट मेरे गालो पर फिसलने लगे और एक हाथ वो मेरी शर्ट को ऊपर कर के पेट पर रख दिया।

"बस... बस मौसा जी अब छोड़ो," मै उनका हाथ पकड़ते हुए बोली।

"क्यो क्या हुआ बबली।"

"नहीं प्लीज ये ठीक नहीं है।"

"पुच पुच," वो मेरे गालो पर किस करने लगे, "एंजॉय करना कोई गलत नहीं है, यही तो उम्र है एंजॉय करने की।" उनका हाथ पेट पर फिसलता हुआ ऊपर आने लगा तो मै उसे पकड़ ली।

"मै कोई गलत लड़की नहीं हूँ," मेरे मुह से निकल गया, "गलती से दर्जी अंकल के साथ हो गया था, अब आप दोनों मेरा फायदा उठाने लगे हो।"

"अरे ये क्या कह रही हो, तुम कोई गलत लड़की थोड़े ही हो, तुम तो बहुत अच्छी और प्यारी हो," वो मेरे गालो को बार बार किस करने लगे।

"सेक्स करने से कोई गलत थोड़े ही हो जाता है और मै कोई तुम्हारा फाइदा नहीं उठा रहा हूँ मै तो तुम्हें प्यार कर रहा हूँ," वो मुझे पटाने लगे और मेरा हाथ पकड़ के अपने हाफ पैंट मे तन कर खड़े लन्ड पर रख दिये।

"मै तुम्हे बहुत प्यार करूंगा," वो फुसफुसाए, "मै तो तुम्हारा अपना हूँ, इस दर्जी की तरह पराया नहीं हूँ।"

उनका हाथ फिसलते हुए मेरे स्तनो को दबोच लिया, "मै तुम्हारे साथ कोई जबर्दस्ती तो करूंगा नहीं, पर मुझे पता है तुम भी अपने मौसा जी को प्यार करोगी।"

वो मेरे स्तनो को बारी बारी से दबाने लगे और होंटो को किस करने लगे और साथ ही साथ मुझे पटाने मे लगे रहे। मेरे मन मे उथलपुथल मची हुई थी, दीमाग कह रहा था की जो हो रहा है वो गलत है और मुझे इसे रोकना चाहिए पर मन मुझे बहला रहा था की क्या फर्क पड़ता है जब दर्जी से चुदवा लिया, जो की एक अजनबी है तो अब मौसा जी से क्या फर्क पड़ता है।

"आह ऊ ऊह, शाम को आप बहुत ज़ोर से दबा दिये थे, दर्द हो रहा है," मै ढीली पड़ने लगी।

"पुच... पुच... थोड़ा दर्द होने दो, तभी तो मज़ा है," उनकी भर्राई हुई आवाज मेरे कानो मे पड़ी और फिर उनके हाथ मेरे पूरे शरीर को मसलने नोचने लगे।

"अहह, ओहह, उफ़्फ़, अहह, आई," वो मेरे कपड़े उतारते गए और मेरे को भी उनका लन्ड बाहर निकालने के लिए बोले। मै उनका हाफ पैंट नीचे सरका दी और मोटे से लन्ड को सहलाने लगी।

मैंने सारी शर्म, ग्लानी और झिझक को झटक दिया और जब वो मेरी टाँगो के बीच मे हाथ डाले तो मै टाँगे फैला दी और उनकी उँगलियो को अपनी चूत पर महसूस करने लगी।

"उफ़्फ़, आहह, मौसा जी आप बहुत बदमाश हो।"

"बढ़िया, तेरा शरीर पूरा भर गया है," वो मेरी चूत की फाँको को खोलते हुए बोले, "रिनी की शादी मे तुझे देखा था तब तो तू कितनी पतली और छोटी सी थी, पर लन्ड तो तब भी खड़ा हो गया था तेरे को देख के।" वो मेरी चूत मे अपनी एक उंगली घुसा दिये और अपनी जीभ मेरे मुह मे डाल के होंटो को चूसने लगे।

मेरी पूरे बदन मे सनसनी दौड़ने लगी और मै चुदने के लिए पूरी तयार हो गयी। उत्तेजना मे मै भी उनसे चिपक गयी और उनकी पीठ को मसलने लगी। तभी मैंने महसूस किया की दर्जी मेरे पीछे आ गया था और मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगा तो मै चिहुक गयी।

"अभी नहीं," मै कुछ बोलती इससे पहले ही मौसा जी बोल पड़े, "मुझे इतमीनान से पेलने दे।"

"बीच मे ले लेते है लड़की को," दर्जी फुसफुसाया।

"नहीं मुझे ऊपर चढ़ना है, साइड से मज़ा नहीं आता।"

"अरे यार!!! घोड़ी बना ले, मै मुह मे डाल दूँगा।"

उनकी बाते सुनके मेरे बदन मे झुरझुरी दौड़ने लगी,

"नहीं, नहीं, छोड़ो," मै छटपटाई।

"यार समझा कर," ससुर जी गुर्राये, "मज़ा न खराब कर।"

"ठीक है, ठीक है," वो खीसे निपोरने लगा।

"पुच, पुच, मेरी प्यारी बच्ची," ससुर जी मेरे ऊपर चढ़ गए और मेरे दूधिया चूचियो को मसलने लगे।

"मौसा जी," मै कराही, दो दो मर्द मेरे को चोदने के लिए बेताब थे। उत्तेजना मे मेरी आंखे मुँदने लगी और मै ससुर जी की पीठ को कस कर जकड़ ली। वो भी अब पूरे जोश मे थे और मेरी छातियो को ज़ोर ज़ोर से चूस रहे थे और मेरे बदन पर जगह जगह दाँत गड़ा रहे थे।

उनका लन्ड मेरे जांघों पे गड रहा था मै उसे अपनी हथेली मे पकड़ के सहलाने लगी और चूत पे घिसने लगी। वी मेरी टाँगो के नीचे हाथ डाल के उठा दिये और फुसफुसाय, "निशाने पे रख इसे।"

जैसे ही वो धक्का मारे तो आनंद के अतिरेक से मेरा बदन काँपने लगा, मोटा डंडा जैसे मेरी चूत को फाड़ता हुआ अंदर तक घुस गया।

"अहह, आहह, ओहह, मम्मी, आहह, अहह," मेरे मुह से उत्तेजना मे आवाज़े निकालने लगी, लगा जैसे शरीर मे सैकड़ो चिटीया रेंग रही हो।

"शाबाश, मस्त लौंडिया है तू तो, क्या गरम गरम टाइट बुर है तेरी," वो खुश होते हुए बोले, "एसी बुर तो बरसो से नहीं मिली," वो ज़ोर से धक्का मार के पूरा अंदर पेल दिये।

"ओह माँ....आ... यह क्या कर रहे हो... मौसा जी.. उफ्फ्फ... बहुत मोटा है आपका तो..." मै उनके होंटो को बार बार चूमने लगी। ससुर जी अब मेरे को अपने नीचे पूरी तरह से जकड़ लिए और धक्के पे धक्का मारने लगे।

दर्जी कमरे के कोने मे बैठ के देख रहा था की कैसे वो इस नादान लड़की वो बिस्तर पर फैला दिया था और उसकी टाँगो के बीच ज़ोर ज़ोर से चोट कर रहा था। जैसे नदियो की दो धराए पूरे वेग से पहाड़ो से नीचे बहती हुई आती है और आपस मे मिल जाती है, कुछ वैसा ही नज़रा बिस्तर पर था। दोनो एक दूसरे मे समाने के लिए जैसे कुश्ती लड़ रहे हो।

"एक बात तो माननी पड़ेगी," ससुर जी बुद्बुदाय, "रिनी के मायके मे मेरी बहुत खातर तवाजों हुई है, बढ़िया खाना पीना और रात को अपनी लड़की भी देते है चोदने के लिए।"

मै उनके इस गंदे कमेंट को तवाजों नहीं दे पायी क्योकि मै अपने चरम पर पहुंची हुई थी और उनसे चिपक चिपक के झड रही थी। वो भी अब रोक नहीं पा रहे थे और मुझे बूरी तरह भभोड्ते हुए मेरी चूत के अंदर ही अपना गरम गरम वीर्य भर दिये।

झड़ने के बाद वो हाँफते हुए मेरे बगल मे ही लुढ़क गए, मै भी लेटे लेटे अपनी साँसे व्यवस्थित करने लगी। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद वो धीरे से उठ के बाथरूम मे घुस गए और दर्जी मेरे सिरहाने आ के बैठ गया।

वो मेरे बालो को सहलाने लगा और अर्थ भरी दृष्टि से मेरी तरफ देखने लगा।

"मै नी, थक गयी हूँ," मै उसका इरादा समझ गयी।

"मै बिलकुल भी परेशान नहीं करूंगा," वो बोला और वो एक हाथ से मेरे बालो को सहलाने लगा और दूसरे हाथ से मेरी चूचि को।

"अहह," मै कराह पड़ी।

"क्या हुआ,"

"मौसा जी ने इतनी ज़ोर से दबाया," मै शिकायती लहजे मे बोली।

"तो मज़ा भी तो आया की नहीं," इतने मे ससुर जी बाथरूम से निकाल के बोले।

"धत्त!!!"

ससुर जी फिर हाफ पैंट पहन के बिस्तर के कोने मे बैठ गए और दर्जी मेरे होंटो को चूमता रहा और मेरे बदन को सहलाता रहा। वो होंटो को चूमने के बाद मेरे चेहरे को अपनी छाती पर ले आया और मै उसकी बालो भरी छाती से लग कर सुस्ताती रही। फिर उसके फुसलाने पे मै उसके निप्प्ल्स को जीभ से चूमने और चाटने लगी। वो मेरे बालो को पकड़ के मेरा सर अपनी पूरी छाती पर फिराता रहा। धीरे धीरे वो मेरे को नीच और नीच धकेलने लगा। छाती से पेट, नाभि और फिर लन्ड के ऊपर वाले भाग पे।

"ऊह मै नी, नहीं न," मै कसमसाने लगी पर मै जानती थी उसकी मंशा को वो अपना लन्ड चुसवाए बिना मानने वाला नहीं है।

"पुच, पुच, रुक मत," वो मुझे प्रोत्साहित करने लगा।

"बहुत गंदे हो तुम," मै शिकायती लहजे मे बोली।

"जब लड़की अपने मर्द का लन्ड चूस के उसे मज़े देती है तभी तो मर्द भी उस लड़की को तबीयत से चोद के मज़ा देता है," वो बोला और अपना लन्ड मेरे होंटो पर थपथपाने लगा।


मैंने अपना सर उसके पेट पर टिकाया हुआ था और वो मेरे बालो को पकड़ के सर को नीचे धकेल रहा था।

"सुनते ही नहीं हो मेरी तुम बहुत बदमाश हो," मै हथियार डालते हुए बोली और उसकी गोलियो को सहलाने लगी।

"गुड... शाबबाश," वो खुश होता हुआ बोला और मेरे बाल पकड़ के मुह आगे धकेलने लगा।

"बबली तू बहुत प्यारी है आज पूरा अंदर ले ले," उसकी आवाज भर्राई हुई थी।

"इतना बड़ा है की पूरा मेरे मुह मे आता भी नहीं है।"

"पुच, पुच, रिलैक्स करके आराम आराम से चूसेगी तो पूरा अंदर तक ले पाएगी," वो बोला।

मै गहरे लाल रंग के सुपाड़े पर किस करने लगी। उसका लन्ड पूरा टनटना के खड़ा था और मुझे पूरा मुह खोलना पड़ा उसके मोटे सुपाड़े को अंदर लेने के लिए।

"अहह, गुड गर्ल,"

मेरे मुह की गर्मी पाते ही लन्ड जैसे और फूल गया और उसके मोटे लन्ड से मेरा पूरा मुह भर गया।

"अहह, क्या गरम गरम जीभ है, शाबाश, अब लोलिपोप की तरह चूस ले इसे," वो भराई हुई आवाज मे बोला।

मैने होंटो और जीभ के बीच लन्ड को दबा के जैसे ही चुस्की मारी तो उसके मुह से आनंद भरी सिसकारी निकलने लगी।

"अहह, उम्म, आहह, बबली, शाबाश," वो मेरे बालो को पकड़ के मेरे सर को लन्ड के ऊपर नीचे हिलाने लगा।

"औग्ग, ग्ग, ग्ग," मेरी आंखे चौड़ी होने लगी जब लन्ड हलक तक घुस जाता। मै उसके पेट को धक्का दे कर पीछे हटने की कोशिश करने लगी।

"बस बस, शाबाश, रिलैक्स," वो मेरे बालो को पकड़ के मेरे सर को ऊपर नीचे करने लगा, "शाबाश आज पूरा पी जा इसे,"

मुझे भी उसका मोटा गरम गरम मांस मुह मे लेने मे अजीब सा मजा आने लगा और मै मनोयोग से चूसने लगी।

जब भी उसका लन्ड मेरे हलक को छूता तो मै फड़फड़ा जाती पर वो थोड़ी ढील दे कर फिर मेरा मुह चोदने मे लग जाता। उसका लन्ड तेजी से मेरे मुह के अंदर बाहर फिसलने लगा।

"बस एसे ही, शाबाश, थोड़ी देर और," वो बड़बड़ाने लगा, "करती रह, चूसती रह, इतनी देर से तुम दोनों को देख रहा था मै तो ज्यादा रुक भी नहीं पाऊँगा।"

उसकी सिसकरियों से मुझे लगने लगा की इसका होने वाला है पर वो मुझे छोड़ा नहीं और अचानक उसका गरम गरम वीर्य मेरे मुह मे भर गया। मै चिहुक कर पीछे हटने लगी पर वो मेरे सर को दोनों हाथो से जकड़ के अंदर बाहर करता रहा। जब वो दूसरी पिचकारी मारा तो वीर्य मेरे होंटो के कोनो से बाहर बहने लगा।

पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही वो मुझे छोड़ा तो मै लपक के बाथरूम मे घुस गयी कुल्ला करने के लिए।

"गंदे, बदमाश, दुष्ट, तुम... तुम..." मै जब बाथरूम से बाहर आयी तो उसे कोसने लगी, "तुम बहुत गंदे हो, मेरे मुह मे की निकाल दिया।"

वो मुसकुराता रहा, मेरी बातो का उसपर कोई असर नहीं हुआ,

"पुच, पुच, नाराज नहीं होते मेरे जान, तूने तो आज कमाल कर दिया।"

"मेरे मुह मे क्यू निकाला," मै नाराज़ होते हुए बोली।

"लड़की के अंदर ही वीर्य निकाला जाता है," वो ढिठाई से बोला।

मै गुस्से मे अपनी कच्छी पहनने लगी तो रिनी के ससुर जी मेरे को पीछे से मुझे अपनी बाहो मे ले लिए, "पुच, पुच, गुस्सा नहीं करते बिटिया।"

"छोड़ो अब," मै उनसे गुस्सा नहीं दिखा पायी पर दर्जी को आंखो ही आंखो से भाले बरसाती रही, "अब आप दोनों ने अपनी मनमर्जी कर तो ली अब जाओ।"

"अभी से कहाँ, अभी तो सिर्फ 11 बजे है अभी तो पूरी रात बाकी है," वो मेरे गालो को चूमते हुए बोले।

"नहीं न, अब जाओ," मै कसमसाई, "कहीं मम्मी पापा को पता न चल जाए।"

"शश... शश... मेरी प्यारी बच्ची, किसी को नहीं पता चलेगा," ससुर जी मेरे घुटनो के नीचे हाथ डाल के मुझे एक गुड़िया की तरह अपनी बाहो मे उठा लिए। मेरे नंगे उरोज और चेहरा उनके छाती के सफ़ेद बालो मे जैसे छुप सा गया।

वो मुझे बिस्तर पर लिटा दिये, "तेरे को छोड़ के जाने का मन ही नहीं हो रहा।"

मै न नुकुर करती रही, कसमसाती रही पर ससुर जी अपने काम पर लगे रहे। मै बहुत थक गयी थी पर वो मुझे चैन से लेटने नहीं दे रहे थे, उनके सख्त हाथ मेरे कोमल शरीर को जैसे आटे की तरह गूँथने लगे।

"अहह, ऊह, छोड़ो न अब, आई इतनी ज़ोर से नहीं, प्लीज मौसा जी।" तभी दर्जी भी मेरे बगल मे आ गया और मेरा चेहरा अपनी तरफ घूमा के मेरे होंटो को किस करने लगा। दो खेले खाये मजबूत मर्दो ने मुझे अपने बीच मे दबोच लिया।

थोड़ी देर मे ही मेरे मुह से सिसकरिया निकालने लगी और मुझे पता नहीं कब कौन मेरे किस अंग को मसल रहा है या चूस रहा है, मुझे बस अपने पूरे बदन मे एक टीस सी महसूस हो रही थी। एक की जीभ मेरे होंटो के ऊपर थी तो दूसरे की जीभ मेरी चूत पर फिसल रही थी। मै अपने आप को पूरी तरह उनके हवाले कर दी।

शायद ससुर जी अपना लाँड़ मेरे मुह मे डाल दिये और दर्जी मेरे पीछे था। ससुर जी का लाँड़ मेरे मुह मे घुसा हुआ था तभी दर्जी भी अपना मूसल मेरी चूत मे उतार दिया। दोनों जैसे एक लय मे मुझे अपने बीच घोड़ी बना के चोदने लगे। मेरे अंदर जैसे एक नशा सा भर गया था और अजीब तरह के उन्माद से मेरी आंखे बंद हुई जा रही थी।

ससुर जी जब मेरे बालो को कस कर पकड़ लिए तो मुझे अहसाह हो गया की ये झड़ने वाले है, उस रात दूसरी बार मेरा मुह वीर्य से भर गया, पर इस बार मै पहली बार की तरह हड्बड़ाई नहीं।

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सुबह सूर्ये की करणे बिस्तर पर पड़ने लगी तो मेरी आंखे खुल गयी, एक एक कर के रात की बात मुझे याद आने लगी, सबकुछ एक स्वप्न की तरह लग रहा था। पूरा बदन जैसे पके फोड़े की तरह दुख रहा था, मेरे मुह से कराह निकल गयी। नहाते वक़्त देखा की मेरे स्तन और जांघों पे नील भी पड गए थे। इतना सब हो जायगा मैंने ये कभी सोचा भी नहीं था।

जब मै नहा धो कर नीचे पहुंची तो पाया की ससुर जी और दर्जी जाने की तयारी कर रहे थे। वो मेरी ओर देख के धीरे से मुस्कुरा दिये पर मै शर्म के मारे नजरे भी नहीं मिला सकी।

टेम्पो ड्राईवर

 सूबह सूबह मै अपनी बेटी का स्कूल टिफ़िन पैक करने मे लगी थी और मेरे पती रवि बैठ के चाय की चुसकिया ले रहे थे।

"रवि तुम पिंकी को तैयार भी तो कर सकते हो, उसके स्कूल जाने के बाद चाय पी लेना," मै झुंझुलते हुऐ बोली।

मेरे पती सुनी अनसुनी करते हुऐ चाय पीते रहे और मै झुंझुलते हुऐ सभी काम निबटने मे लगी रही। किसी तरह पिंकी को तैयार किया और उसको जूते पहना रही थी की तभी उसके टेम्पो का हॉर्न सुनाई दिया।

"आ रही हू," मै बाल्कनी से झाक के बोली।

"चलो पिंकी फिर लेट हो रही हो," मै उसका हाथ पकड़ मे फ्लॅट से बाहर निकाल पड़ी।

मै सपना, एक 32 साल की हाउसवाइफ़ हू और मै अपनी 5 साल की बेटी पिंकी और पती रवि के साथ नोएडा के एक फ्लॅट मे रहती हू। सूबह सूबह रोज का यही रूटीन था और रोज ही हम लेट हो जाते और टेम्पो वाला हॉर्न पे हॉर्न मारता।

मै जल्दी से पिंकी का हाथ पकड़ के सीढ़ियो से नीचे उतारने लगी, नीचे पहुँच के मुझे ध्यान आया की मै चुन्नी डालना तो भूल ही गयी थी और मैंने ब्रा भी नहीं पहनी थी। मैंने देखा की मेरी चूचिया सफ़ेद कुर्ते मे तन के खड़ी थी और साफ साफ दिखाई दे रही थी। बाहर टेम्पो वाला हॉर्न मार रहा था।

"सूबह सूबह कौन देख रहा है," सोच के मै पिंकी को लेकर बाहर निकाल आई। टेम्पो मे पिंकी की उम्र के ही चार पाँच बच्चे बैठे हुऐ थे।

"मैडम आप रोज लेट कर देती है," वो तीखे स्वर मे बोला और फिर बोलते बोलते रुक गया, वो सीधा मेरी छातियो को घूर रहा था।

मै जल्दी से पिंकी को टेम्पो मे बैठने लगी। मैंने कनखियो से देखा वो कमबखत मुझे घूरे जा रहा था। चुन्नी न होने से मेरी छातिया काफी गहराई तक दिख रही थी और सफ़ेद कुर्ते मे मेरे निप्पलेस भी चमक रहे थे। मै नॉर्मल दिखने की कोशिश करने लगी और इसीलिए अपने हाथो से अपना सीना भी नहीं ढक पायी।

"मैडम, थोड़ा जल्दी आ जाया करे," इस बार वो बड़ी मिठास से बोला पर मुझे घूरना बंद नहीं किया।

"ठीक है, ठीक है," मै बोली और वो पिंकी का हाथ पकड़ के टेम्पो मे बैठा लिया। मै जल्दी से मुड़ के वापस चल दी, मुझे लग रहा था जैसे वो मुझे पीछे से भी घूर रहा हो।

फ्लॅट मे पहुँच के मै रिलैक्स हुई तो महसूस किया की मेरी साँसे तेज चल रही थी। मै शीशे के सामने जा के अपने को देखा तो बहुत शर्म आई की मेरी चूचिया कितनी देखाई दे रही थी। साले टेम्पो वाले ने खूब आंखे सेक ली।

इस छोटे से हादसे ने पूरे दिन मेरे बदन मे खलबली मचाये रखी। दिन भर टेम्पो वाले का वासना से तमतमाता हुआ चेहरा दिखता रहा और बार बार बदन मे सनसनी दौड़ जाती। मैंने महसूस किया की अपने पती के साथ कभी कभी का सेक्स एक रूटीन जैसा हो गया था और उसमे अब पहले जैसा मजा नहीं था। पर ये छोटा सा हादसा शरीर मे रोमांच भर गया।

दोपहर को जब पिंकी के आने का टाइम हुआ तो मेरे बदन के अजीब तरह को रोमच हो आया और मै अपने आप ही मेकअप कर के तयार हो गयी। मैंने एक टाइट जीन्स और टाइट टीशर्ट पहन ली। रोज जब हॉर्न बजता था तो मै पिंकी को नीचे लेने जाती थी। मै हॉर्न बजने का इंतजार करने लगी।

टाइम हो गया था पर अभी तक टेम्पो नहीं आया था। तभी दरवाजे की घंटी बजी, मै चौक पड़ी की इस वक़्त कौन आया। दरवाजा खोला तो टेम्पो वाला पिंकी का हाथ पकड़ के खड़ा था।

"अरे आज हॉर्न नहीं बजाया," मै बोल पड़ी।

"ये लास्ट बच्चे को ड्रॉप करना था तो सोच की आपको क्यो तकलीफ दू, मै खुद ही फ्लॅट तक छोड़ देता हू," वो खीसे निपोरता हुआ बोला। मै समझ गयी की सूबह के नज़ारे के कारण ये फ्लॅट तक पहुच गया है।

पिंकी स्कूल बैग फेक के टीवी के सामने जम गयी। टेम्पो वाला दरवाजे पर खड़ा था और कनखियो से मुझे घूर रहा था। मेरे को अपने पे गर्व सा हुआ की मेरी एक झलक इसे दीवाना बना दे रही थी।

"धन्यवाद, पानी लोगे," मै साधारण शिस्टाचार के नाते बोली, तो वो तुरंत हाँ कहता हुआ अंदर आ गया।

मैंने देखा की वो कोई चालीस पैंतालीस साल का आदमी था, पर था तक्ड़ा। मैंने उसे पानी दिया और वो पानी पीते पीते भी मुझे निहारता रहा। मेरा फिगर भी टाइट कपड़ो मे उभर के आ रही था।

"पिंकी बहुत ही अच्छी लड़की है, बिलकुल भी परेशान नहीं करती," वो बोलने लगा।

"अच्छा, मुझे तो बहुत परेशान करती है, अभी खाना खाने मे कितना नखरा करेगी, मुझे ही पता है।"

वो खीसे निपोरने लगा, फिर पानी पी कर गिलास मेरे हाथ मे पकड़ा दिया।

"अच्छा मै चलता हूँ," वो एसे उम्मीद से बोला जैसे मै उसको रुकने के लिए बोलुंगी।

उस दिन वो पानी पी के चला गया पर फिर रोज ही पिंकी को छोड़ने फ्लॅट तक आने लगा और हर रोज इधर उधर की बाते भी करने लगा। उसे देख के मुझे भी अच्छा लगता था, जब वो मेरे शरीर को कामुक नजरों से देखता तो मुझे रोमांच हो जाता था। मै भी रोज तयार हो के उसका इंतज़ार करती। मुझे पता ही नहीं चला की कब मै अपनी हदे पार करने लगी।

उस दिन वो फ्लॅट के अंदर आ गया और मै पिंकी को खाना देने लगी तो वो रसोई के सामने ही कुर्सी पर बैठ गया। पिंकी खाना ले के टीवी के सामने बैठ गयी और वो मेरे से बाते करने लगा। फ्लॅट का दरवाजा अंदर से बंद था, अब वो रोज ही कुछ देर बाते करने के बाद जाता था। अब उसकी बाते भी बोल्ड होती जा रही थी।

"मैडम आप जब जीन्स पहनती हो तो गज़ब लगती हो," वो बोला, "और आपके पती तो बहुत लकी है जो उनको आप जैसी बीवी मिली है।"

"अच्छा कैसे," मै मुसकुराते हुए बोली।

"क्योकि आपका आगा और पीछा दोनों उभर जाते है," वो बेशर्मी से बोला।

"धत, कैसे बात करता है," मै बोली, हालाकी मुझे भी उसकी ऐसी बातों मे मजा आता था।

"सलवार कुर्ते मै भी आप मस्त लगती हो पर जीन्स की तो बात ही क्या है, मेरे जैसे आदमी तो लाइन लगा के मरेगे," वो बेशरमों की तरह बोला, "आपके पती तो आपको रात भर छोड़ते नहीं होंगे।"

"हट," मै शर्मा गयी।

"उस दिन आप पार्टी मे जो लहंगा पहनी थी उसमे तो गज़ब लग रही थी," वो मेरे को मक्खन लगाता हुआ बोला। मै अंदर ही अंदर खुश होने लगी।

"सच, मैडम लहंगा पहन के दिखाओ न," वो बोला।

"अभी," मै अचरज से बोली।

"हाँ," वो जिद करने लगा।

मेरे शरीर मे सनसनी दौड़ने लगी, इस टेम्पो वाले के लिए मै फैशन परेड करुगी, सोच के ही अजीब सा लग रहा था।

वो जिद करने लगा, "लहंगा पहन के दिखाओ न।"

"पिंकी है,"

"तो क्या हुआ वो तो टीवी देखने मे मस्त है।"

मै अजीब तरह के जैसे नशे मे आ गयी थी और बेडरूम मे कपड़े बदलने चली गयी। मुझे उसके साथ इस तरह से फ़्लर्ट करने मे बहुत मज़ा आने लगा था। वो मेरे पती जैसा संभ्रांत व्यक्ति नहीं था बल्कि लोअर तबके का अशिक्षित व्यक्ति था। वो मेरे प्रति अपनी भावनाओ को घूमा फिरा के नहीं व्यक्त करता था बल्कि सीधे सीधे उसकी वासना उसके चेहरे पर झलकती थी। जैसे ही मैंने कपड़े बदल के दरवाजा खोला वो अंदर ही आ गया।

"वाह मैडम, क्या लग रही हो," वो अश्लील तरीके से बोला और मुझे ऊपर से नीचे तक घूरने लगा।

"कैसे नदीदों की तरह घूर रहे हो, पहले कोई लड़की नहीं देखी क्या," मै थोड़ा तेज स्वर मे बोली तो वो थोड़ा आचकचा गया, मुझे महसूस होने लगा की मै उसे कुछ ज्यादा ही भाव दे रही हूँ।

"मैडम... मैडम... आप तो बुरा मान गयी, आप जैसी सुंदर लड़की मैंने पहले कभी नहीं देखी," वो तुरंत तमीज मे आ के बात करने लगा, तो मै भी नर्म पड गयी।

"मैडम, पीछे घूम के दिखाओ न," वो मिन्नत सी करता हुआ बोला तो मुझे हंसी आ गयी।

"अब तुम्हारे लिए क्या फैशन परेड करूँ," मै नकली नाराजगी दिखते हुए बोली।

"प्लीज मैडम, प्लीज," वो फिर जिद करने लगा।

मेरे बदन मे फिर से सनसनी दौड़ने लगी और मै घूम के अपना बदन उसे दिखाने लगी।

"अहह क्या बात है," वो सिसकारी भरता हुआ बोला, "आपकी कमर का कट और पीछे का उभार बड़ा गज़ब का है," वो सावधानीपूर्वक शब्दो का चयन करता हुआ तमीज से बोला, कहीं मै नाराज़ न हो जाऊ।

मुझे उसकी निगाहे अपने पिछवाड़े मे गड़ती हुई महसूस हो रही थी, मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा, थोड़ी देर मे मै वापस घूमने लगी पर वो मेरे कंधे पर हाथ रख के मुझे रोक दिया,

"मैडम प्लीज थोड़ी देर और देखने दो न," वो धीरे से मेरे कान मे फुसफुसाया तो मै अपनी जगह जड़ खड़ी रह गयी। वो मेरे इतने करीब खड़ा था की उसकी साँसे मुझे अपनी गर्दन पे महसूस होने लगी। उसका कंधे पर रखा हुआ हाथ एसा महसूस हो रहा था जैसे कोई भारी पत्थर रखा हो। तभी वो अपनी हथेली मेरी गांड पर रख दिया और कंधे पर रखा हुआ हाथ मेरे गले मे पिरो के मुझे अपनी बाहो मे समेट लिया।

"अहह, अह, मनोज," मुझे पता था ये सब गलत हो रहा है पर मुझ पर इतनी कामोतेजक खुमारी चढ़ गयी की मै अपना सर उसकी छाती पर टीका के आंखे बंद कर ली। जैसे कबूतर आंखे बंद करके सोचता है की बिल्ली उसे नहीं देख पाएगी वैसे ही मै आंखे बंद करके सोच रही थी की सब सही हो जाएगा। पर मै कबूतरी तो बिल्ली के पंजो मे दबी हुई थी।

वो समझ गया था की यही मौका है कबूतरी के शिकार का, उसके हाथ तेजी से चलने लगे और मेरी साँसे। वो तेजी से मेरी गांड मसलने के बाद मेरे लहंगे का हुक खोल दिया और लहंगा एक तिरस्कृत वस्तु की तरह मेरे कदमो मे जा गिरा। मुझे अपने स्तनो मे एक टीस सी महसूस हुई तो मैने अदखुली आंखो से देखा की मेरा ब्लाउज़ दरवाजे के पल्लो की तरह चौपट खुला हुआ था और मेरा एक दूधिया उरोज उसके शिकंजे मे जकड़ा हुआ था।

"आहह... अह... छोड़ो... अहह... मनोज... अम्म... छोड़ दो प्लीज... अहह।"

"मैडम, जिस दिन से मैंने इन तनी हुई चूचियो की झलक देखी थी उसी दिन से इन्हे अपने हाथो से मसलने की तमन्ना थी," वो भर्राई आवाज मे बोला, "बहुत तनी हुई और टाइट है, तुम्हारे पती ने ढंग से नहीं रगड़ा क्या, आज मल मल के नरम कर दूँगा।"

"मनोज... नहीं... प्लीज," मैने कमजोर सी आवाज मे औपचारिकतावश विरोध किया पर अंदर से उम्मीद थी की वो आज मेरे को एक असली मर्द की तरह रगड़ डाले। मैंने अपनी सहेलियों से कई बार सुना था की उनके पती उन्हे कई बार जोश मे इतनी ज़ोर से चूचियो को मसल डालते की चीखे निकल जाती है दर्द के मारे। पर मेरे पती ने कभी भी इतना ज़ोर नहीं दिखाया और मै हमेशा अपनी सहेलियों से पूछती की क्यो वो अपने पती को एसा करने देती है तो वे हंसने लगती और कहती की मज़ा भी तो आता है। आज जिस तरह से मनोज ने मेरे स्तन को जकड़ा हुआ था मुझे लग रहा था की मुझे उस दर्द या मज़े का अनुभव मिलने वाला है।

"मनोज, पिंकी बाहर वाले कमरे मे है," मै फुसफुसाई।

"तो दरवाजा बंद कर देते है," वो एक हाथ बढ़ा के दरवाजे की कुंडी लगा दिया और मुझे बिस्तर के समीप ले आया।

वो मुझे अपनी और घूमा लिया और मेरे अर्धनग्न बदन को निहारते हुए बोला, "मैडम आप तो बिलकुल अप्सरा जैसी हो, एकदम बेदाग गोरी गोरी, होंट बिना लिपस्टिक के भी गुलाबी।" वो मेरा चेहरा उठा के मेरे होंटो को चूमने लगा और मेरा हाथ पकड़ के अपने लंड़ पे रख दिया। पैंट के ऊपर से ही मुझे उसके बड़े लंड़ का अहसास होने लगा।

मेरे अंदर अब कोई संशय नहीं रह गया था, मै अब तैयार थी उसे अपना शरीर सौपने को और इस अनैतिक सुख को भोगने को।

मै उसकी ज़िप खोल के अंडरवीअर के अंदर हाथ घुसा दी। मोटा गरम गरम लंड़ मेरी हथेली मे आ गया। मेरे दिल धाड़ धाड़ करके मेरे सीने मे बजने लगा। एक सेकंड से भी कम समय मे मेरे मस्तिष्क मे सैकड़ो विचार घूम गए, मै किसी गैर मर्द का लंड हाथ मे पकड़े हूँ, मेरे पती का चेहरा मेरी आंखो के सामने नाच गया, अगर पती देख ले तो गज़ब हो जाएगा। पर मै सब विचारो को झटक के उसके लंड़ को सहलाने लगी।

"अहहम," मनोज और जोश मे भर के मेरे होंटो को चूसने लगा, उसकी जीभ मेरे होंटो के ऊपर फिरने लगी तो मै अपना मुह खोल के उसे अंदर का रास्ता दे दी, दोनों एक दूसरे के होंटो और जीभ को चूमने चाटने लगे। मनोज चूमने के साथ साथ मेरी चूचियो को भी मसलता रहा और मै उसके लंड को सहलाती रही और उसकी खाल को आगे पीछे करती रही।

"चलो बिस्तर पर लेटो अब और सारे कपड़े उतार दो," वो मुझे बिस्तर की तरफ ठेलता हुआ बोला। मै बिस्तर पर चित पड़ गयी और अपनी ब्रा पैंटी भी उतार फेंकी। मैंने देखा की वो जल्दी जल्दी नंगा हो गया और अपना तना हुआ मोटा लंड एक हाथ मे पकड़ के बिस्तर पर चढ़ गया। कुछ पल वो मेरे नंगे जिस्म को घूरता रहा।

"क्या देख रहे हो।"

"यकीन नहीं हो रहा की इतने बड़े साहब की बीवी, ऐसे नंगी होके एक टेम्पो ड्राईवर का लंड लेने को लेटी है।"

"अहम्म।" मै उसकी बेबाक बात सुन के लाल हो गयी, "कुत्ते।"

वो अपनी टाँगे मेरे दोनों ओर डाल के मेरे ऊपर चढ़ गया।

"उल्टी हो जा, तेरी चूचियो से शुरू करता हूँ," वो अब मैडम मैडम करके बात नहीं कर रहा था। मेरे को बहुत शिद्दत से एहसास होने लगा की मेरे से बहुत बड़ी गलती हो गयी है। मै शिकायती लहजे मे उसे देखने लगी पर ऊस पे कोई असर नहीं हुआ। वो मेरे को आसानी से उल्टा लिटा के मेरे ऊपर पसर गया। उसके दोनों हाथ मेरे स्तनो को अपने लौहपाश मे जकड़ लिए और निप्प्ल्स को अपने अंगूठे और उंगली के बीच।

"आहह... हाय मम्मी मर जाऊँगी," मै ज़ोर से छटपटाने लगी।

"क्या हुआ सपना," वो फुसफुसाया पर उसकी पकड़ ढीली नहीं हुई।

"इतने ज़ोर से नहीं," मै सिसकारी भरते हुए बोली।

"अभी ज़ोर लगाया कहाँ है," वो बोला, "पहले कभी चूचिया किसी मर्द से रगड़वाई नहीं है क्या।"

"नहीं, अहह, आई...... आई... नहीं... प्लीज... नहीं," मै उसके हाथो को पकड़ के खीचने लगी। मुझे अपनी सहेली की बात याद आने लगी की कैसे उसका पती उसकी चूचियो को दर्द से भर देता था।

"मेमसाब को दर्द हो रहा है क्या," वो मुझे चिढ़ाता हुआ बोला तो मै रुवासी हो उठी।

वो अपने तकड़े शरीर के नीचे मेरे कमसिन बदन को जकडे हुए था और मेरी चूचियो को आटे की तरह गूंथना शुरू कर दिया और निप्प्ल्स को चुटकी मे मसलने लगा।

"अहह... आई मर गई... अहह... नहीं... प्लीज..." मै लगातार कराहने लगी।

"आवाज कम कर साली, बाहर बच्ची बैठी है," वो बोला।

वो जंगलियों की तरह मेरे स्तन मसल रहा था। मेरे पती ने इतने सालो मे कभी भी मुझे इस तरह से नहीं रगड़ा था। थोड़ी देर छटपटाने के बाद एक टीस सी सीने मे रह गयी और मै उसे बरदस्त करने लगी। फिर धीरे धीरे मुझे दर्द मे अजीब तरह की उत्तेजना का अहसास होने लगा। उसके कडक हाथो के नीचे मेरी छातियो को पहली बार मर्द की रगड़ाई का पता चला।

"साली इनको बहुत छलका छलका के दिखा रही थी," वो बुदबुदाया।

मै आंखे बंद कर ली और बदन मे बढ़ती सनसनी को महसूस करने लगी, मुझे पता ही नहीं चला कब मै उसके तकड़े शरीर को अपनी बाहो मे भर के उसके होटों को चूमने लगी।

वो कभी मुझे उल्टा तो कभी सीधा लिटा के मेरे पूरे बदन का मर्दन करने लगा। जब जब वो ज़ोर से मेरे बदन को नोचता मै सिसकारी भर्ती हुई उससे चिपक जाती।

"अहह इतनी ज़ोर से मत दाबो," मै बुदबुदाई, "तुम तो मेरे को मार ही डालोगे।"

वो अपना लंड मेरी होंटो पे रगड़ने लगा। मै कभी अपने पती को इतनी आसानी से समर्पण नहीं किया जीतने आसानी से मै उसको अपना शरीर सौप रही थी।

"ये तो बहुत मोटा है," मेरे मुह से निकल गया तो वो मुस्कुराने लगा।

"चल मुह खोल," वो बोला।

मै झिझकते हुए मुह खोल दी तो वो अपना मोटा लंड मेरे मुह मे घुसाने लगा और मुझे अपना मुह पूरा फैला के खोलना पड़ा। वो एक हाथ से मेरे बालो को जकड़ लिया और मेरे सर को अपने काबू मे कर लिया और दूसरे हाथ से वो मेरे होटो और गालो को सहलाने लगा।

"चूस इसे," उसकी वासना भरी आवाज सुनाई पड़ी। मै उसके सुपाड़े पर अपनी जीभ फिरने लगी तो उसके मुह से वासना भरी सिसकरिया निकालने लगी।

"अहह," उसकी मेरे बालो पर पकड़ और कस गयी और वो अपने लंड को मेरे मुह मे और अंदर घुसाने लगा।

"अग्ग, अग्ग। आहह" मै कसमसने लगी पर वो मुझे कस के जकड़े हुए था।

"चूस," वो बोला।

मै जीभ फिराते हुए उसके लंड को लोलिपोप की तरह अपने होंटो के बीच चूसने लगी।

"अहह। अहह। साबाश," वो खुश होता हुआ बोला। "अंदर तक ले ले।"

मै आंखे बंद कर के लंड को चूसने लगी और उसकी गर्माहट को महसूस करने लगी। उसकी हाथो की पकड़ और सख्त हो गयी थी और वो मेरे मुह को आगे पीछे अपने लंड पर रगड़ने लगा।

"अग्ग, अग्ग। आहहअग्ग, अग्ग। आहहअग्ग, अग्ग। आहह," उसका लंड मेरे मुह मे अंदर बाहर चलने लगा और हर धक्के से वो और अंदर घुसने लगा। मै हाथो से उसे रोकने की कोशिश करने लगी पर वो मेरे को मजबूती से जकड़े हुए था। मेरी आंखे फैल जाती जब जब उसका लंड मेरे हलक तक पहुच जाता।

"अहह, तू एकदम मस्त माल है," वो वासना मे भर कर बोला, "शबबश एसे ही लंड लेती रह, अहह, नखरा नहीं," वो मेरे बालो को खीचता हुआ मेरे मुह को अपने लंड पे फिट किए रहा।

"जैसे पानी पीते है एसे ही लंड को पीती रह," वो मुझे समझता हुआ बोला। लंड मेरे हलक को पार करने वाला था।

मै छटपटाई पर वो मुझे दबोचे रहा। उसका चेहरा वासना मे तमतमा रहा था और वो मुझे बिलकुल भी ढील नहीं दिया।

"अहह लेटी रह, पीती रह," वो बड़बड़ाने लगा और अपना लंड मेरी हलक के अंदर बाहर करने लगा।

मै उसके नीचे बुरी तरह फस गयी थी और वो अपनी मनमानी करता रहा। मुह मे लाउडा फिट होने की वजह से मै किसी तरह नाक से सांस ले रही थी और उसे बरदास्त कर रही थी। वो मेरे बालो को पकड़ के मेरा मुह अपने लंड पर ऊपर नीचे करके मेरे मुह को चोदने लगा।

मै छटपटाती रही और वो मेरा मुह चोदता रहा। मै अब अंदर ही अंदर घबराने लगी थी और मुझे लग रहा था की वो आज मेरे मुह मे ही अपना माल झाड देगा। मैंने राहत की सास ली जब वो लंड मेरे मुह से बाहर निकाल लिया। उसका चेहरा वासना से तमतमा रहा था।

"टांगे फैला," वो बोला तो मै चुपचाप टाँगे ऊपर उठा ली। वो एक हाथ से मेरी टांग पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपना लंड मेरे छेद पर फिट करने लगा।

"आहह... आई," मेरे मुह से सिसकारी निकल गयी, वो दो धक्को मे ही अपना मूसल मेरे अंदर पेल दिया।

"अहहम ह... टाइट है तू तो," वो भर्राई आवाज मे बोला, "टांगे पकड़," वो मेरे को बोला और अपने दोनों हाथो से मेरी छातियो को जकड़ लिया।

मेरे रोम रोम मे आग भर गयी, उसका लंबा मोटा लंड मेरी चूत मे खलबली मचा रहा था। दो तीन दमदार धक्को मे ही मेरी आंखे मुँदने लगी और मै सातवे आसमान पे पहुँच गयी।

"आहह मनोज, आहह मम्मी आहह" मै उसको कस के जकड़ ली और उसके होंटो को चूमने लगी। वो भी पूरे जोश मे भर के मुझे हुमच हुमच के चोदने लगा और दोनों हाथो से मेरी छातियो को कस कस के मसलने भी लगा। मुझे जोश मे दर्द का पता ही नहीं चला। मै कुछ ही देर मे झड गयी और वो भी उसके थोड़ी देर बाद मेरी चूत के अंदर अपना माल निकाल दिया।

वो हाँफता हुआ मेरे बगल मे गिर गया तो मै धीरे धीरे नॉर्मल होने लगी, तब मुझे अपना रोम रोम मे दर्द महसूस होने लगा। मेरे जबड़े लंड चूस चूस मे दुखने लगे थे और मेरी छातियो मे तीखा दर्द हो रहा था।

"तुम तो बिलकुल जंगली हो, मेरी पूरी जान ही निकाल दी।" मुझे अब हकीकत का अहसास होने लगा था और पछतावा होने लगा की कैसे मै एक छिनाल की तरह इस टेम्पो वाले से चुद गयी। वो पूरी तरह से सन्तुस्ट हो के कपड़े पहनने लगा, जाने से पहले वो मेरे पास आया और मेरे होंटो को चूमने लगा तो मुझे अपने ऊपर ग्लानि होने लगी। मै किसी तरह उठ के अपने बदन पर कपड़े डाले।